旗袍攝影
बरसी के बिना फेयर?
जब मैंने पहली बार अपने चेहरे को काले-सफ़ेद तस्वीर में देखा… सोचा—ये मुझे है! मैंने सोचा कि ‘मैं क्यों हूँ?’
माँ की पुरानी हथकहफ़्च पिल्लो पर पड़ी है… मगर ‘लेस्क्यूचर’? हाँ! मगर ‘वोग’? नहीं! मुझे तो सिर्फ़ सांसार की सांसदता चाहिए!
अभीत्र-एक्सप्रेशन? सिर्फ़ ‘शांट’।
आपकभी कभी ‘मिर्रो’ में अपना चेहरा देखकर सोचते हो—‘यह कौन हूँ?’
**कमेंट्र में #खुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलखुलখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলখোলথে করি ক্ষেত্রে আয়ার।
এই ছবিটা দেখে মনে পড়লো আমার মা’র সেই লালোয়ান-শাড়ি…
ক্যামেরা চালিয়েও ‘লাইটরুম’-এ ‘ফটোশপ’-এ – কিন্তু ‘লাইক’-এর জন্যে ‘হাসি’! আমি 59টা ‘ফ্রেম’-ইস্ট্ ছবির ‘ভিউগ’–য়? না! ছবির ‘শিক’— অথচ ‘শিক’–য়? তোম?
তখনই… জন্যে ‘হাসি’! আপনি? কমেন্টেরিতে ‘আসছ?’
Она не фотографировала — она запечатлела момент.
Сидела на белой кровати в дожде… и всё это — не для Вога Жапон, а потому что тишина стала языком.
Моя мама из Гуанчжоу оставила платок в виде призрака… и никто не снимал. Не лингерия.
А теперь? Вы как смотрите? Комментарии в бою!

絲綢靜力
